Saturday, January 28, 2017

दुनिया को चलाने वाले चंद लोगों के नाम

दोस्तों , ये काफी उलझे विचारों द्वारा उत्त्पन्न पोस्ट है । अतः हिंदी में लिख रहा हूँ ।
मुद्दा है की दुनिया पर राज करने वाले लोग कितने हितकारी है उस काम को करने के लिए जो उन्हें दिया गया है। दूसरे शब्दो में कहें तो - क्या आधार है कि नेता, चयन होने पर प्रजा के हित में काम करेंगे ?
जब हम किसी नौकरी के लिए आवेदन करते है तो एक शैक्षिक योग्यता पूर्ण करनी अनिवार्य होती है । और जब एक व्यक्ति किसी प्रशाशनिक पद पर प्रतिस्थित होता है, तो उसे एक शैक्षक योग्यता से अधिक, उसकी निर्णय लेने की क्षमता तथा तर्क क्षमता को प्रमाणित करना होता है , किसी परीक्षा के माध्यम से । 
परंतु जब कोई व्यक्ति इन सभी प्रशाशनिक पदाधिकारियो के कार्य को संचालित करने के लिए राजनितिक पद पर आता है , उसे कोई भी परीक्षा नहीं देनी होती। उसका निर्णय सभी योग्य अधिकारियो को मानना होता है । 
मैं मानता हूँ कि किसी कार्य को करने हेतु शैक्षणिक योग्यता ही पर्याप्त नहीं है, न ही स्वयं में अनिवार्य है। जीवन के अनुभव भी हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं, पर कई राजनैतिज्ञों के कथन, योग्यता और अनुभव की कसौटी पर बहुत तुच्छ दिखते है । 
इतिहास भरा पड़ा है ऐसी घटनाओं से जो सिर्फ राजनैतिज्ञों की हठ, जड़ता और अज्ञानता की वजह से हुईं और लाखों करोडों के घरों के उजड़ने का कारण बनी । आप किसी भी युद्ध का विश्लेषण करें, प्रथम विश्व युद्ध, चार करोड़ सैनिको ने प्राण गवाये । कारण सिर्फ शक्तिशाली व्यक्तियों की मूर्खता। काइज़र को दोषी ठहराएं या हथियारों की दौड़ को, निर्णयो में जड़ता थी ।  द्वितीय विश्व युद्ध, आठ करोड़ सैनिक मृत्यु को प्राप्त हुए। कारण हिटलर की भूख का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था ।  बस एक बात साफ़ है कि नेता ने कहा, देश को तुम्हारी जरूरत है, जाओ सीमा पर लड़ो, जान दो, और सैनिक अपने घर परिवार को छोड़कर चला गया, फिर कभी वापस न आने के लिए । किसी ने आक्रमण करने के लिए भेजा, तो कही सही फैसले लेने वाले पक्ष के सैनिकों ने जान गवाई । 
यहाँ यदि युद्ध का वर्णन छोड़ दें, तो ऐसी घटनाएं भी असंख्य हैं जहाँ इन नेताओं के फैसलों की वजह से लाखों लोग तबाह हो गए । भारत पाकिस्तान का बंटवारा एक ऐसा ही फैसला था । जिन्ना को अगर भारतीय राजनीति में जगह मिली थी तो केवल चर्चिल की कूटनीतियों और गाँधी जी के गलत फैसलों के कारण । 
आज जिस समय मैं ये लेख लिख रहा हूँ , अमेरिका की सड़कों पर हजारों लोग नवनियुक्त ऱाष्ट्रपति ट्रम्प का विरोध कर रहे हैं । ख़बर देख रहा हूं कि, अमेरिका के हवाई अड्डो पर शरणार्थियों को रोका जा रहा है , क्योंकि सात इस्लामिक देशों से लोगों के आने पर ट्रम्प ने रोक लगा दी है । मुझे नहीं पता कितने परिवार वहाँ के हवाई अडडों पर रोक दिये गए होंगे , लेकिन अपने घर को छोड़कर शरणार्थी बनने का दर्द एक शरणार्थी ही जानता है । क्या ये एक बेवकूफी नहीं है कि आपने किसी को वीसा दिया और अब हवाई अड्डे पर परिवार के साथ खड़ा कर दिया । 
अब मुद्दे पर आते है , क्या आधार है कि नेता चयन होने पर प्रजा के हित में काम करेंगे ?
अगर आप किसी मल्टीनेशनल कंपनी के मैनेजर या उच्च पदाधिकारी की तुलना किसी नेता से करे, और निर्णायक क्षमता का एक टेस्ट ले, तो निश्चित रूप से तर्क क्षमता के आधार पर आप उस कंपनी के कर्मचारी का चयन करेंगे, चेहरे या भाषण देने में नेता आगे हो सकता है । अधिकारी या कर्मचारी अपने घर परिवार के  लिए  काम करता है , इसलिए वो अपने फैसलो को लेकर सावधान और जागरूक है, वह नौकरी स्थायित्व को लेकर भयभीत भी हो सकता है, नेता देश के लिए काम कर रहा है । परिवार और देश में से अगर चयन करना हो तो एक सामान्य व्यक्ति परिवार का चयन करेगा । 
क्या कारण है कि हम देश के आईएएस , मल्टिनॅशनल्स के कर्मचारी तो बहुत सावधानी से  चुनते है , पर नेता जिसपर हमारा काफी भविष्य निर्भर करता है उसे हम किसी भी IQ टेस्ट के बिना ही ले लेते है । ये लोग ही चुने जाने के  बाद आईएएस अधिकरियों को आदेश देते  है । 
 भारत में तो कोई ऐसा कानून भी नहीं है जो अपराधियों को राजनितिक पद पर जाने से रोका जा सके । दुर्दांत अपराधी यहाँ खुलेआम चुनाव लड़ते है , और जीतते है । 
अब समय आ गया है कि राजनितिक पदों के उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित हो । आपराधिक मामलो के दोषियों को राजनितिक पदों तथा चुनावो से दूर रखा जाए । 
फिर भी नेता चयन होने के बाद सही फैसला लेगा, इस बात की कोई गारन्टी नहीं है।  ये बहुत पुरानी परंपरा रही है कि जनता नेता चुनती है । और जनता नेता की अंधभक्त भी हो जाती है। पर ऐसा नहीं है की चयनित व्यक्ति सदैव सही कदम उठाएगा। जैसा की परिवार और देश के उदाहरण से प्रतीत होता है, अगर फैसले का सीधा असर उसे लेने वाले व्यक्ति पर पड़ता है तो वह फैसला तर्क तथा जागरूकता में लेगा । 
अतः जिम्मेदारी तय हो, अगर फैसला गलत होता है, तो उसे उठाने वाला व्यक्ति क्या वहन करेगा, क्या भुगतान करेगा। 
राजनितिक पदों के दायित्व तय किये जाये । 
फिर भी नेता एक मनुष्य है, वह  कई फैसले ऐसे ले सकता है जो उस जनता को ही नापसंद हो, जिसने उसका चयन किया है । या फिर इस बात में भी शंका हो, की अमुक फैसला जनता को पसंद है या नहीं । ऐसी स्थिति में निर्णय से प्रभावित होने वाले लोगो का मत लिया जाए । निर्णय से लाभित एवं हानित व्यक्तियों का मत लिया जाए। मत देने वाले व्यक्ति की भी जिम्मेदारी तय की जाए। उदाहरण के लिए भारत में कई लोग ये कहते है कि भारत को पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए। इस उदाहरण में जिम्मेदारी इस बात से तय की जा सकती है, क्या वो लोग अपने किसी परिवार के सदस्य को सेना में भेजने को तैयार हैं ?
अतः निर्णयो में जनता की भागीदारी हो । 
इन सभी के बावजूद धन एक ऐसा कारक है, जो एक योग्य से योग्य व्यक्ति के निर्णय को प्रभावित कर सकता है। अतः ये आवश्यक है कि राजनितिक पद पर स्थित व्यक्ति किसी संस्था विशेष या व्यक्ति विशेष, जो कि उसके किसी निर्णय का घटक है , के साथ वित्तीय लेन देन न कर सके.
राजनीति में कार्यरत सभी व्यक्तियों, परिवार तथा सम्बन्धियो की संपत्ति व आय. व्यय का ब्यौरा आजीवन सार्वजनिक रखा जाए। 
धन्यवाद् !

1 comment:

Dipak Kokate said...

Very nice post Sam!!
Keep it up.