दोस्तों आपको याद होगी निर्भया कांड की वो सुर्खियां ,जो अखबारों के पन्नो में दब कर अब बस सुर्ख हो कर ही रह गयी हैं| उन दिनों खबरों को पढ़ते पढ़ते मैं रो पड़ा था | एक लड़की पर इतना अत्त्याचार , हिंसा की वो पराकाष्ठा की सामान्य मानव की आत्मा तक कांप उठे| मानव के मानव पर अत्त्याचार करने के ऐसे किस्से मैंने केवल द्वितीय विश्व युद्ध मेँ हिटलर के यातना शिविरों के ही सुने थे |
उस लड़की के कुछ अंतिम बयानों में से एक ये था : "उन लोगो को आग में जलाकर मार देना चाहिए ". ऐसा उसने क्यों कहा होगा , ये सोचते हुए महसूस होता है, कि न्याय एक बहुत आवश्यक प्रकिया है, एक सव्स्थ समाज को बनाये रखने के लिए , और एक बीमार और कमजोर समाज को स्वस्थ बनाने के लिए भी |
इस घटना ने काफी प्रसिद्धि दी भारत को, सारे विश्व के सामने | सबने जाना और भारत ने माना, की दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं|
लेकिन आज की ताज़ा स्थिति ये है की दिल्ली में नवजात बच्ची से लेकर वृद्ध महिला तक कोई सुरक्षित नहीं है|
ये दुनिया की रेप कैपिटल है| कुछ दिन पहले ही आठ माह की बच्ची से बलात्कार की खबर पढ़कर ह्रदय वेदना से भर उठता है |
आप आंकड़े उठा कर देख लीजिये, हर रोज दिल्ली में बच्चियों के साथ वहशीपन हो रहा है | अब आंकड़े एक तरफ रखकर आँखे बंद करके उन बच्चियो की आँखों में देखने की कोशिश करिये , खून से लथपथ उनके शरीर की पीड़ा को महसूस करके देखिये , सरकारी अस्पतालों में गूंजती उन चीखों को सुनिए, और जीवन भर न निकलने वाले उस मानसिक दंश की कल्पना करके देखिये | ये सब अब कभी सामान्य और सहज जीवन नहीं जी पाएंगी|
इन सब पीड़ितों के आंसू न्याय की मांगते हैं , और एक कायर समाज कभी भी न्याय नहीं कर सकता , कायर समाज हमेशा छिपता है , महंगी कारों के अंदर , गेटेड सोसाइटीज़ के अंदर, रुढ़िवादो और उन सारे आडम्बरों के अंदर जो केवल एक खुश समाज को दर्शाते हैं , जिसे देखकर वो मन ही मन खुश होता है , ये सोचकर कि जो अपराध दूसरो के साथ हो रहे हैं , वो उसके साथ कभी होंगे ही नहीं | कुछ ऐसा ही बुज़दिल है भारत का दिल दिल्ली |
आइये अब देखते हैं , क्या होता है उन लोगो का जो की ऐसा करते है|
निर्भया कांड को छह साल हो गए हैं , एक अपराधी जो अवयस्क था छूट खुका है | पांच वयस्क में से एक ने आत्महत्त्या की, चार अपराधियों को मृत्युदंड दिया गया है , | न्याय दिया है भारतीय न्याय व्यवस्था ने , उस घटना में जिसने विश्व भर में भारत में महिलाओ की सुरक्षा को लेकर प्रश्न खड़े किये | परन्तु क्यों एक सत्रह साल नौ महीने के अपराधी को किशोर कारगर में केवल तीन साल रखा गया?, जबकि सर्वाधिक हिंसा उसी कथित किशोर ने की थी |
संपादन : चार आरोपियों को मृत्युदंड २० मार्च २०२० को मृत्युदंड मिला
भारत में हर साल ७२०० अवयस्क लड़कियों के बलात्कार के मामले दर्ज़ होते हैं | ये केवल चार से पांच % है सभी बलात्कार की घटनाओ का , क्यूंकि अधिकतर (९५%) मामले कभी दर्ज नहीं कराये जाते |
तो इन चार पांच % घटनाओ का क्या , क्या सभी को इतनी जल्दी न्याय मिल पाया , या मिल पायेगा , जिनके पीड़ित किसी तरह न्यायालयों के द्वार पर पहुँच तो गए हैं , लेकिन आगे एक धीमी गति से चलने वाली सरकारी प्रक्रिया है , और उस प्रक्रिया की हर एक दर्बलता का फायदा उठाने को खड़ा अपराधी है|
असलियत ये है की इन चार पांच प्रतिशत घटनाओ में भी केवल चार में से एक को न्याय मिलता है , केवल २५% को |
मुझे प्रतीक्षा है जस्टिस वर्मा कमिटी के उस प्रस्ताव के और दृढ़ता से लागु होने का , जिसमे उन्होंने बलात्कार के जघंन्य अपराध में मृत्युदंड का प्रावधान किया था |
शायद दंड के डर से ये अपराध काम हो जाए , लेकिन जब तक ये समाज , आडम्बरों , रुढ़िवादो को हटाकर कमजोर का सम्मान करना और अपराधी की पहचान करना नहीं सीखता है , ये कायर ही रहेगा |
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