Tuesday, December 21, 2021

सामान्य हवन विधि

 यज्ञ अथवा हवन हिन्दू कर्मकांड का एक प्रमुख अंग है। यज्ञ एक उपासना मात्र न होकर एक भावना है जिसे शब्दों में : त्याग , निःस्वार्थ बलिदान , निष्काम योग आदि में वर्णित किया जा सकता है। 

यज्ञ करने की कई विधियां प्रचलित हैं। सभी विधियां सही हैं क्योंकि यज्ञ में केवल यज्ञ भावना महत्वपूर्ण होती है। प्रस्तुत लेख में वैदिक यज्ञ विधि का तथा मंत्रो का विस्तार पूर्वक वर्णन है। 


अपेक्षित सामग्री : 

१. हवन कुंड 

२. लकड़ी : आम , पीपल , बरगद , चन्दन , देवदार  (देओदार ), ढाक , 

इनमे से कोई भी लकड़ी उपलभ्ध न होने की दशा में सामान्यतः उपलभ्ध साफ़ लकड़ी का प्रयोग करे ,

३. जल , ताम्र पात्र में , चम्मच 

४. दीपक , पीतल या मिट्टी का 

५. घी / घृत , साफ़ पात्र में , चम्मच 

६. हवन सामग्री 

७. कपूर 

८. बैठने के लिए साफ़ चादर / चटाई 

९. माचिस , लाइटर 

उपरोक्त सामग्री के उपलब्ध होने पर हवन संम्पन्न किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित सामग्री श्रद्धानुसार प्रयोग करें। 

इष्टदेव की मूर्ति , मिष्ठान / मेवा , रोली - आटा रंगोली बनाने के लिए , कलावा , अगरबत्ती , फूल 


प्रथम चरण, यज्ञ व्यवस्था  :

यज्ञ करने का सही समय प्रातः अथवा सायें का है। यज्ञ खाना खाने के बाद नहीं करना चाहिए। 

विधि:

चादर/चटाई को इस तरह से बिछायें कि यजमान का मुख पूर्व की ओर हो तथा यज्ञ कुंड यजमान के सामने की ओर , अन्य सभी गण यज्ञ के चारो ओर बैठ सकते हैं। 

रोली और आटे की सहायता से रंगोली बना सकते हैं जिसके बीच में यज्ञ वेदी को स्थापित करें, अन्यथा फूलों के बीच में भी रख सकते हैं। इष्टदेव की मूर्ति अथवा चित्र भी हवन कुंड के सामने रख सकते हैं। 

यज्ञ वेदी के आस पास बाकी की सामग्री रख लें। 

यजमान को छोड़ कर प्रति व्यक्ति तीन समिधा लकड़ियों से छांट लें , समिधा हवन कुंड से छोटी तथा ज्वलन में सहायक होनी चाहिए। 

सभी लोग शांत मन से बैठ जाएं और प्रभु का ध्यान करें। 


द्वितीय चरण : आचमन तथा ईश्वरस्तुति प्रार्थना 

मंत्र :

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

अर्थ :

 हम उस सत्ता की महिमा का ध्यान करते हैं जिसने इस ब्रह्मांड को उत्पन्न किया है; क्या वह हमारी बुद्धि को प्रबुद्ध कर सकती है.

आचमन 

क्रिया : दाहिने हाथ की हथेली पर जल लें। निम्नलिखित तीन मंत्रो का उच्चारण कर एक एक करके जल ग्रहण करें। 

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।।1 ।।

ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।।2।।

ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।।3।।

अर्थ : 

हे प्रभु ये जल हमारे लिए अमृत के सामान हो। 

क्रिया :हाथ धोएं , बाएं हाथ की हथेली पर जल लें, दाएं हाथ की मध्यमा और अनामिका उंगलियों पर पहले जल ले कर शरीर के अंगो को निम्नानुसार दायें से बाएं छुएं। 

ॐ वाङ्म आस्येऽस्तु ।  मुख को ।

ॐ नसोर्मेप्राणोऽस्तु ।  नासिका के दोनों छिद्रों को ।

ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । दोनों नेत्रों को ।

ॐ कर्णयोर्मे चक्षुरस्तु ।  दोनों कानों को ।

ॐ वाह्वोर्मे बलमस्तु ।  दोनों बाहों को ।

ॐ ऊर्वोर्मेऽओजोस्तु ।  दोनों जंघाओं को ।

ॐ अरिष्टानिमेऽङ्गानि मनूस्तन्वा में सह सन्तु ।

क्रिया :पूरे शरीर पर जल छिड़कें ।

अर्थ : हे प्रभु मेरे शरीर के सभी अंगो/इन्द्रियों में चेतना बनी रहे। 


निम्नलिखित आठ मंत्रो से ईश्वर प्रार्थना करें , मन्त्र संस्कृत में हैं तथा उनके अर्थ गीत के माध्यम से, हिंदी में व्यक्त किये गए हैं। गीतों को इच्छानुसार गायें। 

मंत्र :

ॐ विश्वानी देव सवितर्दुरितानि परासुव ।

 यद भद्रं तन्न आ सुव ॥१॥

अर्थ : 

तू सर्वेश सकल सुखदाता  शुद्ध स्वरुप विधाता है। 

उसके कष्ट नष्ट हो जाते , शरण तेरी जो आता है। 

सारे दुर्गुण दुर्व्यसनों से  हमको नाथ बचा लीजे। 

मंगलमय गुण कर्म पदारथ , प्रेम सिंधु हमको दीजे। 

मंत्र :

ॐ हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत् ।

स दाघार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥२॥

अर्थ :

तू ही स्वयं प्रकाश सचेतन , सुख स्वरुप शुभ त्राता है। 

सूर्य चंद्र लोकादिक को तू  रचता और टिकाता है। 

पहले था अब भी तू ही है घट घट में व्यापक स्वामी। 

योग भक्ति तप द्वारा तुझको पावें हम अंतर्यामी। 

मंत्र :

ॐ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा: ।

यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥३॥

अर्थ :

तू ही आत्मज्ञान बलदाता, सुयश विज्ञ जन गाते हैं। 

तेरी चरण शरण में आकर भव सागर तर जाते हैं। 

तुझको ही जपना जीवन है, मरण तुझे बिसराने में। 

मेरी सारी शक्ति लगे  प्रभु तुझसे लगन लगाने में। 

मंत्र :

ॐ य: प्राणतो निमिषतो महित्वैक इन्द्राजा जगतो बभूव।

य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥४॥

अर्थ :

तूने अपनी अनुपम माया से जग ज्योति जगाई है। 

मनुज और पशुओं को रचकर, निज महिमा प्रगटाई है।

अपने हिय सिंहासन पर श्रद्धा से तुझे बिठाते हैं। 

भक्ति भाव की भेंटें लेकर श्री चरणों में आते हैं। 

मंत्र :

ॐ येन द्यौरुग्रा पृथिवी च द्रढा येन स्व: स्तभितं येन नाक: ।

यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥५॥

अर्थ :

तारे रवि चन्द्रादिक रचकर निज प्रकाश चमकाया है। 

धरणी को धारण कर तूने , कौशल अलख लखाया है। 

तू ही विश्व विधाता पोषक , तेरा ही हम ध्यान करें। 

शुद्ध भाव से भगवन तेरे भजनामृत का पान करें। 

मंत्र :

ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव ।

यत्कामास्ते जुहुमस्तनो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥६॥

अर्थ :

तुझसे भिन्न न कोई जग में ,सब में तुहि समाया है। 

जड़ चेतन सब तेरी रचना ,तुझमे आश्रय पाया है। 

हे सर्वोपरि विभो , विश्व का तूने साज सजाया है।  

हेतु रहित अनुराग दीजिये , यही भक्त को भाया है। 

मंत्र  :

ॐ स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।

यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये घामन्नध्यैरयन्त ॥७॥

अर्थ :

तू गुरु है प्रजेश भी तू है , पाप पुण्य फलदाता है। 

तू है सखा बंधूमम तू ही, तुझसे ही सब  नाता है। 

भक्तो को इस भव बंधन से तू ही मुक्त कराता है। 

तू है अज अद्वैत महाप्रभु ,सर्वकाल का ज्ञाता है। 

मंत्र :

ॐ अग्ने नय सुपथा राय अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान।

युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेँम ॥८॥

अर्थ :

तू है स्वयं प्रकाश रूप प्रभु , सबका सिरजनहार तुहि। 

रसना निस दिन रटे तुम्ही को , मन में बसना सदा तुहि। 

अघ अनर्थ से हमें बचाते रहना हरदम दयानिधान। 

अपने भक्तजनों को भगवन , दीजे यही विशद वरदान। 


तृतीय चरण : अग्निधानम तथा आहुति 

अग्निधानम : अग्नि को प्रज्ज्वलित करने की विधि 

मंत्र :

ॐ भूर्भुव: स्व: ॥

क्रिया :कपूर प्रज्वलित करें ,

क्रिया :निम्न मंत्र के साथ कपूर को हवन कुंड में छोड़े तथा घी की सहायता से अग्नि को प्रज्वलित करें 

मंत्र :

ॐ भूर्भुव: स्वर्द्यौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा ।

तस्यास्ते पृथिवि देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ॥

क्रिया :निम्नलिखित मन्त्र के साथ अग्नि को घी दें 

मंत्र :

ॐ उद्बुध्यस्बाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टा पर्तेस सृजेथामयं च । 

अस्मिन्त्सधस्थे अघ्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ।।

समिधाधनाम : समिधा आहुति की विधि 

क्रिया :निम्नलिखित चार मंत्रो में स्वाहा का उच्चारण होने पर सभी गण यज्ञ में समिधा की आहुति देंगे , यजमान घृत की आहुति देंगे, तीसरी समिधा चौथे मंत्र के पूर्ण होने पर/स्वाहा पर दी जायेगी न की तीसरे मंत्र पर। 

मंत्र :

ॐ अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व । चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसे नान्नाद्येन समेध यस्बाहा ।। 

इदमग्नये जातवेदसे इदंन मम ।।1

ॐ समिधग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयता तिथिम् । 

अस्मिन् हव्या जुहोतन स्वाहा ।। इदमग्नये इदं न मम ।।2

ॐ सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन ।

 अग्नये जातवेदसे स्वाहा ।। इदमग्नये जातवेदसे इदं न मम ।।3

ॐ तंत्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धंयामसि । 

बृहच्छोचा यविष्ठ्या स्वाहा ।। इमग्नयेऽङ्गसे इदं न मम ।।4

पञ्चघृताहुति : घृत आहुति की विधि 

क्रिया :निम्नलिखित मंत्र  से पांच बार घृत की आहुति यज्ञकर्ता द्वारा दी जायेगी। 

मंत्र :

 ॐ अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व । 

चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसे नान्नाद्येन समेध यस्बाहा ।। 

इदमग्नये जातवेदसे इदंन मम ।।

स्विष्टिकृत आहुति : प्रस्तुत मंत्र से सभी गण मिष्ठान की आहुति देंगे 

ॐ यदस्य कर्मणोत्यरीरिचं , यद्यन्यूनमिहाकर्मं। अगनिष्ठतत सव् ि षस्टीकृत विध्वातसर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे। अग्नये स्विष्टीकृते सुहुतहुते , सर्वप्राश्चितानाम  कामनां , समृद्धयित्रे सर्वान्नःह कामान्तसमृद्धये स्वाहा। इदं अग्नये स्विष्टिकृते इदं न मम।     

क्रिया :इन मंत्रो से यज्ञ कुंड के निकट निर्धरित दिशा में जल छिड़के ,

मंत्र :

ॐ अदितेऽनुमन्यस्व ।। इात पूर्वे ।

ॐ अनुमतेऽनुमन्यस्व ।। इति पश्चिमे ।

ॐ सरस्वत्यनुमन्यस्व इति उत्तरे ।

क्रिया :इस मंत्र से यज्ञकुंड के चारोंओर जल छिड़कावें।

मंत्र :

ॐ देव सवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय ।

 दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु ।। 

क्रिया :इन मंत्रो से घी तथा हवन सामग्री की आहुति दें। 

मंत्र :

ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये इदं न मम । 

ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय इदं न मम ।

ॐ पजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम ।

ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिद्राय इदं न मम ।


चतुर्थ चरण : प्रातः काल तथा /अथवा सायें काल की आहुति 


प्रातः काल मन्त्र 

ओम् ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा॥१॥

ओम् सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा॥२॥

ओम् ज्योतिः सूर्य: सुर्योज्योति स्वाहा॥३॥

ओम् सजूर्देवेन सवित्रा सजूरूषसेन्द्रव्यता जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा॥४॥

ओम् भूरग्नये प्राणाय स्वाहा। इदमग्नये प्राणाय - इदं न मम॥१॥

ओम् भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा। इदं वायवेऽपानाय -इदं न मम॥२॥

ओम् स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा। इदमादित्याय व्यानाय -इदं न मम॥३॥

ओम् भूभुर्वः स्वरिग्नवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा।
इदमग्निवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः - इदं न मम॥४॥

ओम् आपो ज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूभुर्वः स्वरों स्वाहा॥५॥

ओम् यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते।
तया मामद्य मेधयाऽग्ने मेधाविनं कुरू स्वाहा॥६॥

ओम् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।यद भद्रं तन्न आ सुव स्वाहा ॥७॥

अग्ने नय सुपथा राय अस्मान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्ति विधेम स्वाहा॥८॥

सायें काल मन्त्र :

ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा॥१॥
क्रिया :निम्न मंत्र का उच्चारण मन में  करें 
ओम् अग्निवर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा॥२॥
ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा॥३॥
ओम् सजूर्देवेन सवित्रा सजुरात्र्येन्द्रवत्या जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा॥४॥

ओम् भूरग्नये प्राणाय स्वाहा।इदमग्नये प्राणाय - इदं न मम॥१॥
ओम् भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा।इदं वायवेऽपानाय -इदं न मम॥२॥
ओम् स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा।इदमादित्याय व्यानाय -इदं न मम॥३॥
ओम् भूर्भुवः स्वरिग्नवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा।
इदमग्निवाय्वादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः - इदं न मम॥४॥
ओम् आपो ज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा॥५॥

क्रिया :गायत्री मंत्र का तीन बार उच्चारण करें 

मन्त्र :
ओम् यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते।
तया मामद्य मेधयाऽग्ने मेधाविनं कुरू स्वाहा॥६॥
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।   [1] [2] [3]
ॐ विश्वानिदेव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं तन्न आसुव ।


पंचम चरण : शिवसंकल्प सूक्त 

मंत्र :
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।
दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥1॥
अर्थ :
प्रभो जागते हुए सदा जो दूर दूर तक जाता है , 
सोते में भी दिव्य शक्तिमय , कोसों दौड़ लगता है। 
दूर दूर वह जाने वाला , तेजों का भी तेज निधान ,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

मंत्र :
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः।
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥2॥
अर्थ :
जिसके द्वारा बुद्धिमान सब नाना करतब करते हैं ,
सत्कर्मों को करें मनीषी, वीर युद्ध में मरते हैं ,
पूजनीय अतिशय जिसका है प्रजावर्ग में अद्भुत मान ,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

मंत्र :
यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्जोतिरन्तरमृतं प्रजासु।
यस्मान्न ऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥3॥
अर्थ :
जिसमें धैर्य , शक्ति चिंतन की , तथा ज्ञान रहता भरपूर ,
प्राणिमात्र में अमृतमय है वह प्रकाश का बहता पूल। 
जिसके बिना नहीं चलता है निश्चय कोई कार्य विधान,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

मंत्र :
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥4॥
अर्थ :
अमर तत्त्व जो त्रय कालों का भेद यथावत पाता है ,
बुद्धिज्ञान की पांच इन्द्रियाँ , अहंकार से नाता है। 
इन्ही सप्त ऋत्वज का फैला जिसमें निशदिन यज्ञ वितान,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

मंत्र :
यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः।
यस्मिश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥5॥
अर्थ :
चार वेद निगमागम सारे , ईश ज्ञान के सुन्दर श्रोत,
रथ के पहियों में ज्यों आरे एवं रहते ओत प्रोत। 
जङ्घमजग का चित्त अचल हो जिसमें रहता निष्ठावान ,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

मंत्र :
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥6॥
अर्थ :
जो जनकुल की बागडोर को इधर उधर ले जाता है ,
चतुर सारथी ज्यों घोड़े को उत्तम चाल चलता है। 
सदा प्रतिष्ठित ह्रदय देश में , विपुल तीव्रगति अजर महान ,
नित्य युक्त शिव संकल्पों से , वह मन मेरा हो भगवान। 

पूर्ण आहुति:
क्रियापूर्ण आहुति के ३ बार उच्चारण के साथ सारी हवन सामग्री तथा घी को अग्नि में समर्पित करें :
मन्त्र :
ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।

सष्ठम चरण : शांति पाठ तथा आरती  
शांति पाठ मंत्र :

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्ति रापः शान्तिरोषधयः
 शान्ति वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः 
सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिःसामा शान्तिरेधि ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । सर्वारिष्टा सुशान्तिर्भवतु ।।

आरती :

यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए ।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए ।।
वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।
अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।
धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।
नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।
रोग पीड़ित विश्व के, सन्ताप सब हरते रहें ।।
कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।
भावनाएं पूर्ण होंवे, यज्ञ से नर-नारि की ।।
लाभकारी हों हवन, हर जीव-धारी के लिए ।
वायु जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए ।।
स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।
‘‘इदं न मम’’ को सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो ।।
हाथ जोड़ झुकाए मस्तक, वन्दना हम कर रहे ।
नाथ करुणा रूप वरुणा, आपकी सब पर रहे ।।

मन्त्र :
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।
अर्थ :
हे नाथ सब सुखी हों कोई ना हो दुखहारी,
सब हो निरोग भगवन, धन्य धन्य के भंडारी,
सब भद्र भाव देखें सद मार्ग के पथिक हों ,
दुखिया ना कोई ना होवे सृष्टि में प्राणधारी ,

इसके पश्चात सभी को कलावा बाँध दें , तिलक लगा दें , प्रसाद का वितरण करें , अतिरिक्त जल को सूर्य को अर्पण करें अथवा पौधों को दें , हवन संम्पन्न हुआ। इच्छानुसार भजन गाये जा सकते हैं। 

भजन :
1. 

ब्रह्मन् स्वराष्ट्र में हों,द्विज ब्रह्म तेजधारी ।
क्षत्रिय महारथी हों,अरिदल विनाशकारी ॥

होवें दुधारू गौएँ,पशु अश्व आशुवाही ।
आधार राष्ट्र की हों,नारी सुभग सदा ही ॥

बलवान सभ्य योद्धा,यजमान पुत्र होवें ।
इच्छानुसार वर्षें,पर्जन्य ताप धोवें ॥

फल-फूल से लदी हों,औषध अमोघ सारी ।
हों योग-क्षेमकारी,स्वाधीनता हमारी ॥

2.

ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,किस विधि मिलूं दयामय,
दीजे मोहे सुमति ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥ॐ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

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